छन्द क्या है?
यति, गति, वर्ण या मात्रा आदि की गणना के विचार से की गई रचना छन्द अथवा पद्य कहलाती है।
चरण या पद – छन्द की प्रत्येक पंक्ति को चरण या पद कहते हैं। प्रत्येक छन्द में उसके नियमानुसार दो चार अथवा छः पंक्तियां होती हंै। उसकी प्रत्येक पंक्ति चरण या पद कहलाती हैं। जैसे –
रघुकुल रीति सदा चलि जाई।
प्राण जाहिं बरू वचन न जाई।।
उपयुक्त चौपाई में प्रथम पंक्ति एक चरण और द्वितीय पंक्ति दूसरा चरण हैं।
मात्रा – किसी वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है, उसे 'मात्रा' कहते हैं। 'मात्राएँ' दो प्रकार की होती हैं –
(१) लघु । (२) गुरू S
लघु मात्राएँ – उन मात्राओं को कहते हैं जिनके उच्चारण में बहुत थोड़ा समय लगता है। जैसे – अ, इ, उ, अं की मात्राएँ ।
गुरू मात्राएँ – उन मात्राओं को कहते हैं जिनके उच्चारण में लघु मात्राओं की अपेक्षा दुगुना अथवा तिगुना समय लगता हैं। जैसे – ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राएँ।
लघु वर्ण – ह्रस्व स्वर और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को 'लघु वर्ण' माना जाता है, उसका चिन्ह एक सीधी पाई (।) मानी जाती है।
गुरू वर्ण – दीर्घ स्वर और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को 'गुरू वर्ण' माना जाता है। इसकी दो मात्राएँ गिनी जाती है। इसका चिन्ह (ऽ) यह माना जाता है।
उदाहरणार्थ –
क, कि, कु, र्क – लघु मात्राएँ हैं।
का, की, कू , के , कै , को , कौ – दीर्घ मात्राएँ हैं।
मात्राओं की गणना
(१) संयुक्त व्यन्जन से पहला ह्रस्व वर्ण भी 'गुरू अर्थात् दीर्घ' माना जाता है।
(२) विसर्ग और अनुस्वार से युक्त वर्ण भी "दीर्घ" जाता माना है। यथा – 'दुःख और शंका' शब्द में 'दु' और 'श' ह्रस्व वर्ण होंने पर भी 'दीर्घ माने जायेंगे।
(३) छन्द भी आवश्यकतानुसार चरणान्त के वर्ण 'ह्रस्व' को दीर्घ और दीर्घ को ह्रस्व माना जाता है।
यति और गति
यति – छन्द को पढ़ते समय बीच–बीच में कहीं कुछ रूकना पड़ता हैं, इसी रूकने के स्थान कों गद्य में 'विराग' और पद्य में 'यति' कहते हैं।
गति – छन्दोबद्ध रचना को लय में आरोह अवरोह के साथ पढ़ा जाता है। छन्द की इसी लय को 'गति' कहते हैं।
तुक – पद्य–रचना में चरणान्त के साम्य को 'तुक' कहते हैं। अर्थात् पद के अन्त में एक से स्वर वाले एक या अनेक अक्षर आ जाते हैं, उन्हीं को 'तुक' कहते हैं।
तुकों में पद श्रुति, प्रिय और रोंचक होता है तथा इससे काव्य में लथपत सौन्दर्य आ जाता है।
गण
तीन–तीन अक्षरो के समूह को 'गण' कहते हैं। गण आठ हैं, इनके नाम, स्वरूप और उदाहरण नीचे दिये जाते हैं : –
नाम स्वरूप उदाहरण सांकेतिक
१ यगण ।ऽऽ वियोगी य
२ मगण ऽऽऽ मायावी मा
३ तगण ऽऽ। वाचाल ता
४ रगण ऽ।ऽ बालिका रा
५ जगण ।ऽ। सयोग ज
६ भगण ऽ।। शावक भा
७ नगण ।।। कमल न
८ सगण ।।ऽ सरयू स
निम्नांकित सूत्र गणों का स्मरण कराने में सहायक है –
"यमाता राजभान सलगा"
इसके प्रत्येक वर्ण भिन्न–भिन्न गणों परिचायक है, जिस गण का स्वरूप ज्ञात करना हो उसी का प्रथम वर्ण इसी में खोजकर उसके साथ आगे के दो वर्ण और मिलाइये, फिर तीनों वर्णों के ऊपर लघु–गुरू मात्राओं के चिन्ह लगाकर उसका स्वरूप ज्ञात कर लें। जैसे –
'रगण' का स्वरूप जानने के लिए 'रा' को लिया फिर उसके आगे वाले 'ज' और 'भा' वर्णों को मिलाया। इस प्रकार 'राज भा' का स्वरूप 'ऽ।ऽ' हुआ। यही 'रगण' का स्वरूप है।
छन्दों के भेद
छन्द तीन प्रकार के होते हैं –
(१) वर्ण वृत्त – जिन छन्दों की रचना वर्णों की गणना के नियमानुसार होती हैं, उन्हें 'वर्ण वृत्त' कहते हैं।
(२) मात्रिक – जिन छन्दों के चारों चरणों की रचना मात्राओं की गणना के अनुसार की जाती है, उन्हें 'मात्रिक' छन्द कहते हैं।
(३) अतुकांत और छंदमुक्त – जिन छन्दों की रचना में वर्णों अथवा मात्राओं की संख्या का कोई नियम नहीं होता, उन्हें 'छंदमुक्त काव्य कहते हैं। ये तुकांत भी हो सकते हैं और अतुकांत भी।
प्रमुख मात्रिक छंद-
(१) चौपाई
चौपाई के प्रत्येक चरण में १६ मात्राएँ होती हैं तथा चरणान्त में जगण और तगण नहीं होता।
उदाहरण देखत भृगुपति बेषु कराला।
ऽ-।-। ।-।-।-। ऽ-।- ।-ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
उठे सकल भय बिकल भुआला।
।-ऽ ।-।-। ।-। ।-।-। ।-ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
पितु समेत कहि कहि निज नामा।
।-। ।-ऽ-। ।-। ।-। ।-। ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
लगे करन सब दण्ड प्रनामा।
।-ऽ ।-।-। ।-। ऽ-। ऽ-ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
(२) रोला
रोला छन्द में २४ मात्राएँ होती हैं। ग्यारहवीं और तेरहवीं मात्राओं पर विराम होता है। अन्त मे दो गुरू होने चाहिए।
उदाहरण –
'उठो–उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो।
करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो।।
तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
भारत के दिन लौट, आयगे मेरी मानो।।
ऽ-।-। ऽ ।-। ऽ-। ऽ-।-ऽ ऽ-ऽ ऽ-ऽ (२४ मात्राएँ)
(३) दोहा
इस छन्द के पहले तीसरे चरण में १३ मात्राएँ और दूसरे–चौथे चरण में ११
यति, गति, वर्ण या मात्रा आदि की गणना के विचार से की गई रचना छन्द अथवा पद्य कहलाती है।
चरण या पद – छन्द की प्रत्येक पंक्ति को चरण या पद कहते हैं। प्रत्येक छन्द में उसके नियमानुसार दो चार अथवा छः पंक्तियां होती हंै। उसकी प्रत्येक पंक्ति चरण या पद कहलाती हैं। जैसे –
रघुकुल रीति सदा चलि जाई।
प्राण जाहिं बरू वचन न जाई।।
उपयुक्त चौपाई में प्रथम पंक्ति एक चरण और द्वितीय पंक्ति दूसरा चरण हैं।
मात्रा – किसी वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है, उसे 'मात्रा' कहते हैं। 'मात्राएँ' दो प्रकार की होती हैं –
(१) लघु । (२) गुरू S
लघु मात्राएँ – उन मात्राओं को कहते हैं जिनके उच्चारण में बहुत थोड़ा समय लगता है। जैसे – अ, इ, उ, अं की मात्राएँ ।
गुरू मात्राएँ – उन मात्राओं को कहते हैं जिनके उच्चारण में लघु मात्राओं की अपेक्षा दुगुना अथवा तिगुना समय लगता हैं। जैसे – ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राएँ।
लघु वर्ण – ह्रस्व स्वर और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को 'लघु वर्ण' माना जाता है, उसका चिन्ह एक सीधी पाई (।) मानी जाती है।
गुरू वर्ण – दीर्घ स्वर और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को 'गुरू वर्ण' माना जाता है। इसकी दो मात्राएँ गिनी जाती है। इसका चिन्ह (ऽ) यह माना जाता है।
उदाहरणार्थ –
क, कि, कु, र्क – लघु मात्राएँ हैं।
का, की, कू , के , कै , को , कौ – दीर्घ मात्राएँ हैं।
मात्राओं की गणना
(१) संयुक्त व्यन्जन से पहला ह्रस्व वर्ण भी 'गुरू अर्थात् दीर्घ' माना जाता है।
(२) विसर्ग और अनुस्वार से युक्त वर्ण भी "दीर्घ" जाता माना है। यथा – 'दुःख और शंका' शब्द में 'दु' और 'श' ह्रस्व वर्ण होंने पर भी 'दीर्घ माने जायेंगे।
(३) छन्द भी आवश्यकतानुसार चरणान्त के वर्ण 'ह्रस्व' को दीर्घ और दीर्घ को ह्रस्व माना जाता है।
यति और गति
यति – छन्द को पढ़ते समय बीच–बीच में कहीं कुछ रूकना पड़ता हैं, इसी रूकने के स्थान कों गद्य में 'विराग' और पद्य में 'यति' कहते हैं।
गति – छन्दोबद्ध रचना को लय में आरोह अवरोह के साथ पढ़ा जाता है। छन्द की इसी लय को 'गति' कहते हैं।
तुक – पद्य–रचना में चरणान्त के साम्य को 'तुक' कहते हैं। अर्थात् पद के अन्त में एक से स्वर वाले एक या अनेक अक्षर आ जाते हैं, उन्हीं को 'तुक' कहते हैं।
तुकों में पद श्रुति, प्रिय और रोंचक होता है तथा इससे काव्य में लथपत सौन्दर्य आ जाता है।
गण
तीन–तीन अक्षरो के समूह को 'गण' कहते हैं। गण आठ हैं, इनके नाम, स्वरूप और उदाहरण नीचे दिये जाते हैं : –
नाम स्वरूप उदाहरण सांकेतिक
१ यगण ।ऽऽ वियोगी य
२ मगण ऽऽऽ मायावी मा
३ तगण ऽऽ। वाचाल ता
४ रगण ऽ।ऽ बालिका रा
५ जगण ।ऽ। सयोग ज
६ भगण ऽ।। शावक भा
७ नगण ।।। कमल न
८ सगण ।।ऽ सरयू स
निम्नांकित सूत्र गणों का स्मरण कराने में सहायक है –
"यमाता राजभान सलगा"
इसके प्रत्येक वर्ण भिन्न–भिन्न गणों परिचायक है, जिस गण का स्वरूप ज्ञात करना हो उसी का प्रथम वर्ण इसी में खोजकर उसके साथ आगे के दो वर्ण और मिलाइये, फिर तीनों वर्णों के ऊपर लघु–गुरू मात्राओं के चिन्ह लगाकर उसका स्वरूप ज्ञात कर लें। जैसे –
'रगण' का स्वरूप जानने के लिए 'रा' को लिया फिर उसके आगे वाले 'ज' और 'भा' वर्णों को मिलाया। इस प्रकार 'राज भा' का स्वरूप 'ऽ।ऽ' हुआ। यही 'रगण' का स्वरूप है।
छन्दों के भेद
छन्द तीन प्रकार के होते हैं –
(१) वर्ण वृत्त – जिन छन्दों की रचना वर्णों की गणना के नियमानुसार होती हैं, उन्हें 'वर्ण वृत्त' कहते हैं।
(२) मात्रिक – जिन छन्दों के चारों चरणों की रचना मात्राओं की गणना के अनुसार की जाती है, उन्हें 'मात्रिक' छन्द कहते हैं।
(३) अतुकांत और छंदमुक्त – जिन छन्दों की रचना में वर्णों अथवा मात्राओं की संख्या का कोई नियम नहीं होता, उन्हें 'छंदमुक्त काव्य कहते हैं। ये तुकांत भी हो सकते हैं और अतुकांत भी।
प्रमुख मात्रिक छंद-
(१) चौपाई
चौपाई के प्रत्येक चरण में १६ मात्राएँ होती हैं तथा चरणान्त में जगण और तगण नहीं होता।
उदाहरण देखत भृगुपति बेषु कराला।
ऽ-।-। ।-।-।-। ऽ-।- ।-ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
उठे सकल भय बिकल भुआला।
।-ऽ ।-।-। ।-। ।-।-। ।-ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
पितु समेत कहि कहि निज नामा।
।-। ।-ऽ-। ।-। ।-। ।-। ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
लगे करन सब दण्ड प्रनामा।
।-ऽ ।-।-। ।-। ऽ-। ऽ-ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
(२) रोला
रोला छन्द में २४ मात्राएँ होती हैं। ग्यारहवीं और तेरहवीं मात्राओं पर विराम होता है। अन्त मे दो गुरू होने चाहिए।
उदाहरण –
'उठो–उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो।
करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो।।
तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
भारत के दिन लौट, आयगे मेरी मानो।।
ऽ-।-। ऽ ।-। ऽ-। ऽ-।-ऽ ऽ-ऽ ऽ-ऽ (२४ मात्राएँ)
(३) दोहा
इस छन्द के पहले तीसरे चरण में १३ मात्राएँ और दूसरे–चौथे चरण में ११
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