8.27.2016

हिंदी व्याकरण अलंकार



अलंकार -  " काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्व अलंकार कहे जाते हैं ! "

अलंकार के तीन भेद हैं -

1. शब्दालंकार -  ये शब्द पर आधारित होते हैं ! प्रमुख शब्दालंकार हैं -  अनुप्रास , यमक , शलेष , पुनरुक्ति , वक्रोक्ति  आदि !

2. अर्थालंकार -  ये अर्थ पर आधारित होते हैं !  प्रमुख अर्थालंकार हैं -  उपमा , रूपक , उत्प्रेक्षा, प्रतीप , व्यतिरेक , विभावना , विशेषोक्ति ,अर्थान्तरन्यास , उल्लेख , दृष्टान्त, विरोधाभास , भ्रांतिमान  आदि !

3.उभयालंकार- उभयालंकार शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित रहकर दोनों को चमत्कृत करते हैं!

1- उपमा - जहाँ गुण , धर्म या क्रिया के आधार पर उपमेय की तुलना उपमान से की जाती है  
     जैसे -
              हरिपद कोमल कमल से  ।

हरिपद ( उपमेय )की तुलना कमल ( उपमान ) से कोमलता के कारण की गई ! अत: उपमा अलंकार है !

2-  रूपक - जहाँ उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप किया जाता है ! जैसे -

                   अम्बर पनघट में डुबो रही ताराघट उषा नागरी  ।

आकाश रूपी पनघट में उषा रूपी स्त्री तारा रूपी घड़े डुबो रही है ! यहाँ आकाश पर पनघट का , उषा पर स्त्री का और तारा पर घड़े का आरोप होने से रूपक अलंकार है !

3- उत्प्रेक्षा - उपमेय में उपमान की कल्पना या सम्भावना होने पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है !
     जैसे -
                मुख मानो चन्द्रमा है ।

यहाँ मुख ( उपमेय ) को चन्द्रमा ( उपमान ) मान लिया गया है ! यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है !
इस अलंकार की पहचान मनु , मानो , जनु , जानो शब्दों से होती है !

4- यमक - जहाँ कोई शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और उसके अर्थ अलग -अलग हों वहाँ यमक अलंकार होता है ! जैसे -

                      सजना है मुझे सजना के लिए  ।

यहाँ पहले सजना का अर्थ है - श्रृंगार करना और दूसरे सजना का अर्थ - नायक शब्द दो बार प्रयुक्त है ,अर्थ अलग -अलग हैं ! अत: यमक अलंकार है !

5- शलेष - जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो , किन्तु प्रसंग भेद में उसके अर्थ एक से अधिक हों , वहां शलेष अलंकार है ! जैसे -

              रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून  ।
              पानी गए न ऊबरै मोती मानस चून  ।।

यहाँ पानी के तीन अर्थ हैं - कान्ति , आत्म - सम्मान  और जल  ! अत: शलेष अलंकार है , क्योंकि पानी शब्द एक ही बार प्रयुक्त है तथा उसके अर्थ तीन हैं !

6- विभावना - जहां कारण के अभाव में भी कार्य हो रहा हो , वहां विभावना अलंकार है !जैसे -

                        बिनु पग चलै सुनै बिनु काना ।

वह ( भगवान ) बिना पैरों  के चलता है और बिना कानों के सुनता है ! कारण के अभाव में कार्य होने से यहां विभावना अलंकार है !

7- अनुप्रास -  जहां किसी  वर्ण की अनेक बार क्रम से आवृत्ति  हो वहां अनुप्रास अलंकार होता है ! जैसे -

                    भूरी -भूरी भेदभाव भूमि से भगा दिया  ।

' भ ' की आवृत्ति  अनेक बार होने से यहां अनुप्रास अलंकार है !

8- भ्रान्तिमान - उपमेय में उपमान की भ्रान्ति होने से और तदनुरूप क्रिया होने से भ्रान्तिमान अलंकार होता है ! जैसे -

नाक का मोती अधर की कान्ति से , बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से,
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है,  सोचता है अन्य शुक यह कौन है ?

यहां नाक में तोते का और दन्त  पंक्ति में अनार के दाने का भ्रम हुआ है , यहां भ्रान्तिमान अलंकार है !

9- सन्देह - जहां उपमेय के लिए  दिए गए उपमानों में सन्देह बना रहे तथा निशचय न हो सके, वहां सन्देह अलंकार होता है !जैसे -

          सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है ।
          सारी ही की नारी है कि नारी की ही सारी है ।

10- व्यतिरेक - जहां कारण बताते हुए उपमेय की श्रेष्ठता उपमान से बताई गई हो , वहां व्यतिरेक अलंकार होता है !जैसे -

          का सरवरि तेहिं देउं मयंकू । चांद कलंकी वह निकलंकू ।।

मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूं ? चन्द्रमा में तो कलंक है , जबकि मुख निष्कलंक है !

11- असंगति - कारण और कार्य में संगति न होने पर असंगति अलंकार होता है ! जैसे -

                      हृदय घाव मेरे पीर रघुवीरै ।

घाव तो लक्ष्मण के हृदय में हैं , पर पीड़ा राम को है , अत: असंगति अलंकार है !

12- प्रतीप - प्रतीप का अर्थ है उल्टा या विपरीत । यह उपमा अलंकार के विपरीत होता है । क्योंकि इस अलंकार में उपमान को लज्जित , पराजित या हीन दिखाकर उपमेय की श्रेष्टता बताई जाती है ! जैसे -

               सिय मुख समता किमि करै चन्द वापुरो रंक ।

सीताजी के मुख ( उपमेय )की तुलना बेचारा चन्द्रमा ( उपमान )नहीं कर सकता । उपमेय की श्रेष्टता प्रतिपादित होने से यहां प्रतीप अलंकार है !

13- दृष्टान्त - जहां उपमेय , उपमान और साधारण धर्म का बिम्ब -प्रतिबिम्ब भाव होता है,जैसे-
             बसै 

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