सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन नदी घाटी की सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। ब्रिटिश पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है। इस सभ्यता को ‘हड़प्पा सभ्यता’ और ‘सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ के नाम से भी जाना जाता है।
इसका सभ्यता का विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) नदी के किनारे हुआ था। मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे। दिसम्बर 2014 में भिर्दाना को अबतक का खोजा गया सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे प्राचीन नगर माना गया है। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता -
हड़प्पा -
- पंजाब (पाकिस्तान) के मौन्टगोमरी जिले में स्थित | है। हड़प्पा के टीले की सर्वप्रथम जानकारी चार्ल्स मैसन / मेसोन (Charles Mason) ने 1826 में दी। 1921 में दयाराम साहनी ने इसका सर्वेक्षण किया और 1923 से इसका नियमित उत्खनन आरम्भ हुआ।
- 1926 में माधोस्वरूप वत्स ने तथा 1946 में मार्टीमर ह्वीलर ने व्यापक स्तर पर उत्खनन कराया।
- यहाँ से हमें निम्नलिखित तथ्य मिले हैं - छः अन्त्रागार (15.25 मी. x 6.09 मी.) जिनका सम्मिलित क्षेत्रफल मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल अन्नागार 838.1025 वर्ग मी. के बराबर है, श्रमिक आवास, ईटों के वृत्ताकार चबूतरे जिनका उपयोग फसल को दाबने के लिए होता था, गेहूँ तथा जौ के दाने।
मोहनजोदड़ो -
- सिंधी में इसका शाब्दिक अर्थ 'मृतकों का टीला' है। यह सिंध (पाकिस्तान) के लरकाना जिले में सिंधु तट पर स्थित हैं सर्वप्रथम इसकी खोज आर. डी. बनर्जी ने 1922 में की थी।
- 1922-30 तक सर जान मार्शल के नेतृत्व में विभिन्न पुराविदों ने उत्खनन किया। प्राप्त साक्ष्यों से पता चलता है कि यह शहर सात बार उजड़कर बसा था।
- यहाँ से प्राप्त अवशेषों में प्रमुख हैं - विशाल स्नानागार (Great Bath), विशाल अन्नागार (Great Granary), महाविद्यालय भवन (Collegiate Building), सभा भवन (Assembly Hall), कांसे की नृत्यरत नारी की मूर्ति (Bronze Statue of Dancing Girl), पुजारी (योगी) की मूर्ति (Priest), मुद्रा पर अंकित पशुपतिनाथ (शिव) (Seal inscribed Pashupatnath), अंतिम स्तर पर बिखरे हुए एवं कुएं में प्राप्त नरकंकाल, सड़क के मध्य कुम्हार का आंवा, गीली मिट्टी पर कपड़े का साक्ष्य।
चन्हूदड़ो -
- मोहनजोदड़ो से 80 मील दक्षिण में स्थित इस स्थल की सर्वप्रथम खोज एन. जी. मजूमदार (N. G.Majumdar) ने 1931 में की थी।
- 1935 में इसका उत्खनन मैके (Mackay) ने किया यहाँ सैंधव संस्कृति के अतिरिक्त प्राक-हड़प्पा संस्कृति (Pre-Harappan Culture), जिसे 'झूकर संस्कृति (Jhuker Culture) और 'झांगर संस्कृति (Jhanger Culture) कहते हैं, के भी अवशेष मिले हैं।
- यहीं के निवासी मुख्यतः कुशल कारीगर थे। इसकी पुष्टि इस बात से हो जाती है कि यह मनके, सीप, अस्थि तथा मुद्रा (Sealmaking) बनाने का प्रमुख केन्द्र था।
- यहाँ से प्राप्त अवशेषों में प्रमुख हैं- 1. अलंकृत हाथी, 2. खिलौना, 3. एक कुत्ते के बिल्ली का पीछा करते पद-चिन्ह ।
- यहाँ किसी दुर्ग का अस्तित्व नहीं मिला है।
लोथल -
- अहमदाबाद जिले (गुजरात) के सरागवाला ग्राम में स्थित इस स्थल की सर्वप्रथम खोज डा. एस. आर. राव (S. R. Rao) ने 1954 में की थी।
- सागर तट पर स्थित यह स्थल पश्चिमी-एशिया से व्यापार का प्रमुख बंदरगाह था।
- यहाँ से प्राप्त अवशेषों में प्रमुख हैं- 1. बंदरगाह (Dockyard), 2. मनके बनाने का कारखाना (Beads factory), 3. धान (चावल) का साक्ष्य (Evidence of rice), 4. फारस की मोहर (Persian Seal), 5. घोड़े की लघु मृण्मूर्ति (Terracotta figurine of a Horse)|
कलीबंगा -
- राजस्थान के गंगानगर जिले में स्थित इस प्राक-हड़प्पा पुरास्थल की खोज सर्वप्रथम ए. घोष (A. Ghose) ने 1953 में की।
- यहाँ से प्राप्त अवशेषों में प्रमुख हैं-1. हल के निशान (जुते हुए खेत) (ploughed field), 2. ईटों से निर्मित चबूतरे (Brick platform), 3. हवनकुण्ड (Fire Altar), 4. अन्नागार (Granary), 5. घरों के निर्माण में कच्ची ईंटों का प्रयोग।
नोट : यहाँ दो सांस्कृतिक अवस्थाओं- हड़प्पा पूर्व और हड़प्पा कालीन के दर्शन होते हैं।
बनवाली -
- हरियाणा के हिस्सार जिले में स्थित इस पुरास्थल की खोज आर. एस. विष्ट (R.S. Bisht) ने 1973 में की।
- यहाँ प्राक-हड़प्पा (PreHarappan) और हड़प्पा संस्कृति (Harappan Culture) दोनों के चिह्न दृष्टिगोचर होते हैं।
- मोहनजोदड़ो की ही, भॉति यह भी एक कुशल-नियोजित शहर था, यहाँ पकी ईंटों का प्रयोग किया गया था।
- यहाँ से प्राप्त अवशेषों में प्रमुख हैं- 1. हल की आकृति (आकृति के रूप में), 2. जौ, तिल तथा सरसों का ढेर (Barley, Seasamum & Mustard), 3. सड़कों और जल-निकास के अवशेष (Remains of Streets and Drains) |
सत्कागेंडोर -
- सैंधव सभ्यता की पश्चिमी सीमा निर्धारित करता यह पुरास्थल पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है। सर्वप्रथम इसकी खोज ए. स्टीन (A. Stain) ने 1927 में की।
- वैवीलोन के साथ व्यापार में इस बंदरगाह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- यहाँ से प्राप्त अवशेषों में प्रमुख हैं- 1. मानव अस्थराख से भरा बर्तन, 2. तांबे की कुल्हाड़ी (Axes of copper), 3. मिट्टी निर्मित चूड़ियां (Bangles of clay), 4. बर्तन (Pottery) |
आलमगीरपुर -
- उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित इस परास्थल की खोज 1958 में की गई।
- सैंधव सभ्यता का पूर्वी छोर निर्धारित करता यह स्थल हड़प्पा संस्कृति की अंतिम अवस्था (Lastphase) से संबंधित है। उल्लेखनीय है, यहाँ से अभी एक भी मुहर प्राप्त नहीं हुई |
सुरकोटदा -
- गुजरात के कच्छ जिले में स्थित इस स्थल की सर्वप्रथम खोज जगतपति जोशी (jagat pati Joshi) ने 1964 में की।
- यह स्थल सैंधव संस्कृति के पतन काल को दृष्टिगत करता है।
- यहाँ के अवशेषों में प्रमुख है - 1. घोड़े की अस्थियाँ (Bones of Horse), 2. एक विशेष प्रकार का कब्रगाह (Special Cenetary)|
रंगपुर -
- यह स्थल गुजरात के अहमदाबाद जिले में स्थित है। क्रमानुसार इसकी खोज 1931 में एम. एस. वत्स (M. S. Vatsa) तथा 1953 में एस. आर. राव (S.R. Rao) ने की।
- यहाँ सैंधव संस्कृति के उत्तरावस्था के दर्शन होते हैं। उल्लेखनीय है कि यहाँ से प्राप्त अवशेषों में न कोई मुद्रा और न ही मातृदेवी की मूर्ति प्राप्त हुई हैं धान की भूसी का ढेर मिला है।
अली मुराद -
- पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में स्थित यह स्थल बैल की लघु मृण्मूर्ति, कांसे की कुल्हाड़ी, इत्यादि के लिए जाना जाता है।
कोटदिजी -
- सिंध (पाकिस्तान) के खैरपुर स्थित इस स्थल की सर्वप्रथम खोज घुर्ये (Ghurey) ने 1935 में की। 1955 से एफ. ए. खान (F. A. Khan) ने इसकी नियमित खुदाई कराई।
- यहाँ प्राक-हड़प्पा (Pre-Harappan Culture)संसकृति की अवस्था दृष्टिगोचर होती है जहाँ पत्थरी का इस्तेमाल होता है। सम्भवतः पाषाण युगीन सभ्यता का अत तथा हड़प्पा सभ्यता का विकास यहाँ हुआ।
सिंधु घाटी सभ्यता- ONE LINER
- रेडियोकार्बन C14 जैसे नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा सिन्धु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2400 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व मानी गयी है |
- इसका विस्तार त्रिभुजाकार है |
- सिन्धु सभ्यता को आद्य ऐतिहासिक (Protohistoric) अथवा कांस्य (Bronze) युग में रखा जा सकता है।
- इस सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ एवं भूमध्य सागरीय थे ।
- सर जान मार्शल (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तत्कालीन महानिदेशक) ने 1924 ई. में सिन्धु घाटी सभ्यता नामक एक उन्नत नगरीय सभ्यता पाए जाने की विधिवत घोषणा की।
- सिन्धु सभ्यता के सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल दाश्क नदी के किनारे स्थित सुतकागेंडोर (बलूचिस्तान), पूर्वी पुरास्थल हिण्डन नदी के किनारे आलमगीरपुर (जिला मेरठ, उत्तर प्र.), उत्तरी पुरास्थल चिनाव नदी के तट पर अखनूर के निकट माँदा (जम्मू-कश्मीर) व दक्षिणी पुरास्थल गोदावरी नदी के तट पर दाइमाबाद (जिला अहमदनगर, महाराष्ट्र)।
- सिन्धु सभ्यता या सैंधव सभ्यता नगरीय सभ्यता थी ।
- सैंधव सभ्यता से प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले स्थलों में केवल 6 को ही बड़े नगर की संज्ञा दी गयी है; ये हैं मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, गणवारीवाला,धौलावीरा, राखीगढ़ी एवं कालीबंगन ।
- स्वतंत्रता प्राप्ति पश्चात् हड़प्पा संस्कृति के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गये हैं।
- लोथल एवं सुतकोतदा–सिन्धु सभ्यता का बन्दरगाह था।
- जुते हुए खेत और नक्काशीदार ईंटों के प्रयोग का साक्ष्य कालीबंगन से प्राप्त हुआ है।
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्नानागार संभवतः सैंधव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है, जिसके मध्य स्थित स्नानकुंड 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा एवं 2.43 मीटर गहरा है।
- अग्निकुण्ड लोथल एवं कालीबंगन से प्राप्त हुए हैं।
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक शील पर तीन मुख वाले देवता (पशुपति नाथ) की मूर्ति मिली है। उनके चारों ओर हाथी, गैंडा, चीता एवं भैंसा विराजमान हैं।
- मोहनजोदड़ो से नर्तकी की एक कांस्य मूर्ति मिली है।
- हड़प्पा की मोहरों पर सबसे अधिक एक शृंगी पशु का अंकन मिलता है। यहाँ से प्राप्त एक आयताकार मुहर में स्त्री के गर्भ से निकलता पौधा दिखाया गया है।
- मनके बनाने के कारखाने लोथल एवं चन्हूदड़ो में मिले हैं।
- सिन्धु सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक है। यह लिपि दायीं से बायीं ओर लिखी जाती थी। जब अभिलेख एक से अधिक पंक्तियों का होता था तो पहली पंक्ति दायीं से बायीं और दूसरी बायीं से दायीं ओर लिखी जाती थी।
- सिन्धु सभ्यता के लोगों ने नगरों तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रीड पद्धति अपनाई।
- घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ सड़क की ओर न खुलकर पिछवाडे की ओर खुलते थे। केवल लोथल नगर के घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते थे।
- सिन्धु सभ्यता में मुख्य फसल थी-गेहूँ और जौ ।
- सैधव वासी मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे।
- मिट्टी से बने हल का साक्ष्य बनमाली से मिला है।
- रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले हैं, जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिलता है। चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से ही प्राप्त हुए हैं।
- सुरकोतदा, कालीबंगन एवं लोथल से सैंधवकालीन आयातित घोडे के अस्थिपंजर मिले है।
- तौल की इकाई संभवतः 16 के अनुपात में थी।
- सैंधव सभ्यता के लोग यातायात के लिए दो पहियों एवं चार पहियों वाली गोमेद सौराष्ट्र बैलगाड़ी या भैंसागाड़ी का उपयोग करते थे।
- मेसोपोटामिया के अभिलेखों में वर्णित मेलूहा शब्द का अभिप्राय सिन्धु सभ्यता से ही है।
- संभवतः हड़प्पा संस्कृति का शासन वणिक वर्ग के हाथों में था।
- पिग्गट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वाँ राजधानी कहा है।
- सिन्धु सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा किया करते थे।
- वृक्ष-पूजा एवं शिव-पूजा के प्रचलन के साक्ष्य भी सिन्धु सभ्यता से मिलते हैं।
- स्वास्तिक चिह्न संभवतः हड़प्पा सभ्यता की देन है। इस चिह्न से सूर्योपासना का अनुमान लगाया जाता है। सिन्धु घाटी के नगरों में किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं।
- सिन्धु सभ्यता में मातृदेवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी।
- पशुओं में कुबड़ वाला साँड़, इस सभ्यता के लोगों के लिए विशेष पूजनीय था।
- स्त्री मृण्मूर्तियाँ (मिट्टी की मूर्तियाँ) अधिक मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सैंधव समाज मातृसत्तात्मक था।
- सैंधववासी सूती एवं ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे।
- मनोरंजन के लिए सैंधववासी मछली पकड़ना, शिकार करना, पशु-पक्षियों को आपस में लड़ाना, चौपड़ और पासा खेलना आदि साधनों का प्रयोग करते थे।
- सिन्धु सभ्यता के लोग काले रंग से डिजाइन किये हुए लाल मिट्टी के बर्तन बनाते थे।
- सिन्धु घाटी के लोग तलवार से परिचित नहीं थे।
- कालीबंगन एक मात्र हड़प्पाकालीन स्थल था, जिसका निचला शहर (सामान्य लोगों के रहने हेतु) भी किले से घिरा हुआ था। कालीबंगन का अर्थ है काली चूड़ियाँ ।यहाँ से पूर्व हड़प्पा स्तरों के खेत जोते जाने के और अग्निपूजा की प्रथा के प्रमाण मिले हैं।
- पर्दा-प्रथा एवं वेश्यावृति सैंधव सभ्यता में प्रचलित थी।
- शवों को जलाने एवं गाड़ने यानी दोनों प्रथाएँ प्रचलित थीं। हड़प्पा में शवों को दफनाने जबकि मोहनजोदड़ो में जलाने की प्रथा विद्यमान थी। लोथल एवं कालीबंगा में युग्म समाधियाँ मिली हैं।
- सैंधव सभ्यता के विनाश का संभवतः सबसे प्रभावी कारण बाढ़ था। आग में पकी हुई मिट्टी को टेराकोटा कहा जाता है।
- कालीबंगा के एक घर में नक्काशीदार ईंटों (Ornamental _bricks) का प्रयोग किया गया था।
- विशाल स्नानागार (Great Bath) की खोज मार्शल (Sir John Marshal) ने की थी।
- मिट्टी के बर्तन के एक टुकड़े पर सूती वस्त्र की छाप कालीबंगा से मिली है।
- मुहरों पर सूती वस्त्रों की छाप-लोथल से ।
- मिट्टी के एक नाद पर बुने हुए वस्त्र के निशान आलमगीरपुर से।
- पुरोहित की प्रस्तर मूर्ति अलंकारयुक्त शाल ओढ़े-मोहनजोदड़ो से।
- मनके बनाने वाले कारीगरों की कार्यशालायें-लोथल तथा चान्हूदड़ो से।
- मुहरों पर पक्षियों के चित्र अंकित नहीं है। डोब (Dove) की आकृति वाले बर्तन मिले हैं, जिनसे यह अनुमान लगता है कि सम्भवतः यह पक्षी धार्मिक महतव का था।
- प्राप्त साक्ष्यों से पता चलता है कि हड़प्पा में चार प्रजातियाँ पाई गई -1. प्रोटो-ऑस्ट्रोलायड (Proto-Austroloid) 2. भूमध्यसागरीय (Mediterranean) 3. मंगोलियन (Mongoloid) 4. अल्पाइन (Alpine)
- इनमें से प्रथम दो प्रजातियाँ ही प्रमुख थीं।
- धर्म सम्भवतः सार्वजनिक कम, व्यक्तिगत अधिक था।
- 'स्वास्तिक चिह्न संभवतः हड़प्पा सभ्यता की ही देन है।
- 'अग्नि कण्ड' लोथल और कालीबंगा से प्राप्त हुए हैं।
- कृषि हड़प्पा अर्थव्यवस्था का मूल आधार था।
- हड़प्पा मुहरों पर सबसे अधिक एक श्रृंगी पशं का अंकन मिलता है।
- द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत उत्खनन का कार्य मार्टीमर व्हीलर के नेतृत्व में किया गया ।
- सिंधु सभ्यता में नीले (Blue) रंग का साक्ष्य नहीं मिला हैं 'R-37' कब्रगाह हड़प्पा में मिला हैं
- कपास (Cotton) की सर्वप्रथम खेती सैंधव लोगों ने की थी अतः यूनानियों ने उसे सिन्डन (Sindon) नाम दिया था
- बनवाली तथा कालीबंगा में दो सांस्कृतिक अवस्थाओं-हड़प्पा-पूर्व (Pre-Harappa) और हड़प्पा-कालीन (Harappan) के दर्शन होते है।
- हड़प्पा सभ्यता का परवर्ती काल (Later phase) रंगपुर तथा रोजदी (Rojdi) में परिलक्षित होता है।
- घोड़े (Horse) की जानकारी मोहनजोदड़ों, लोथल तथा सुरकोटदा से प्राप्त हुई है।
- हडप्पा सभ्यता कांस्य युगीन सभ्यता (Bronze Age Civilization) है।
- संभवतः 1800 ई. पू. में लोथल के लोगों ने चावल (Rice) का उपयोग किया |
सिंधु घाटी सभ्यता से सम्बन्धित महत्वपूर्ण MCQ Gk -
(b) आद्य ब्रह्मा
(c) आद्य विष्णु
(d) आद्य इन्द्र
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